Ghazals of Rasa Chughtai
नाम | रसा चुग़ताई |
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अंग्रेज़ी नाम | Rasa Chughtai |
जन्म की तारीख | 1928 |
जन्म स्थान | Karachi |
ज़िंदगी के सराब भी देखूँ
यूँ गँवाता है कोई जान-ए-अज़ीज़
उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास
तीर जैसे कमान के आगे
तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ
तेरे आने का इंतिज़ार रहा
शाम से पहले घर गए होते
सामने जी सँभाल कर रखना
रहना हर दम बुझा बुझा सा कुछ
रात क्या सोच रहा था मैं भी
रात हम ने जहाँ बसर की है
रात है या हवा मकानों में
पास अपने इक जान है साईं
निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से
मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे
मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है
मिट्टी जब तक नम रहती है
'मीर'-जी से अगर इरादत है
मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी
कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे
कोई ता'मीर की सूरत निकालो
ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए
ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए
कहाँ जाते हैं आगे शहर-ए-जाँ से
जब तक दौर-ए-जाम चलेगा
जब भी तेरी यादों का सिलसिला सा चलता है
इस से पहले नज़र नहीं आया
हुस्न-ए-बज़्म-ए-मिसाल में क्या है
हम ने तो इस इश्क़ में यारो खींचे हैं आज़ार बहुत
हाथ में ख़ंजर आ सकता है