बारिश नहीं लाती कभी अफ़्लाक से ख़ुशबू
बारिश नहीं लाती कभी अफ़्लाक से ख़ुशबू
ख़ुद झूम के उठती है इसी ख़ाक से ख़ुशबू
इस बाग़-ए-तिलिस्मात के फूलों का तो क्या ज़िक्र
आती है वहाँ के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ुशबू
सो मंज़र-ए-ख़ूँ-रंग थे कोंपल से कली तक
फूटी नहीं यूँही गुल-ए-सद-चाक से ख़ुशबू
एहसास को छू जाए तो छू जाए वगर्ना
रहती है गुरेज़ाँ हद-ए-इदराक से ख़ुशबू
महसूस तो होती है अगर कोई करे तो
अज्दाद की अज्दाद की इम्लाक से ख़ुशबू
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