चाह कर हम उस परी-रू को जो दीवाने हुए
चाह कर हम उस परी-रू को जो दीवाने हुए
दोस्त दुश्मन हो गए और अपने बेगाने हुए
फिर नए सर से ये जी में है कि दिल को ढूँडिए
ख़ाक कूचे की तिरे मुद्दत हुई छाने हुए
था जहाँ मय-ख़ाना बरपा उस जगह मस्जिद बनी
टूट कर मस्जिद को फिर देखा तो बुत-ख़ाने हुए
है ये दुनिया जा-ए-इबरत ख़ाक से इंसान की
बन गए कितने सुबू कितने ही पैमाने हुए
अक़्ल-ओ-होश अपने का 'रंगीं' हो गया सब और रंग
किश्वर-ए-दिल में जब आ कर इश्क़ के थाने हुए
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