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कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह - राना सहरी कविता - Darsaal

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह

मेरे महबूब मिरे प्यार को इल्ज़ाम न दे

हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह

मैं ने ख़ुशबू की तरह तुझ को किया है महसूस

दिल ने छेड़ा है तिरी याद को शबनम की तरह

कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है

दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह

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In Hindi By Famous Poet Rana Sahri. is written by Rana Sahri. Complete Poem in Hindi by Rana Sahri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.