उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
उसे पता है कहाँ पेड़ सूख जाता है
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हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है