तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
तू भी ऐ दोस्त आइना निकला
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तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं