नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें
हव्वा बराए-हुस्न है आदम बराए-इश्क़
Rahat Indori
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Allama Iqbal
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वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर