ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
मैं अपने इश्क़ में नाकाम होने वाला था
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दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
आओ आँखें मिला के देखते हैं
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें