कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
मगर जो काम यहाँ फूल से निकलता है
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
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उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
मैं उस की नज़रों का कुछ इस लिए भी हूँ क़ाइल