इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
दीवार गुफ़्तुगू के लिए बेहतरीन है
Anwar Masood
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क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
मैं उस की नज़रों का कुछ इस लिए भी हूँ क़ाइल
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
आओ आँखें मिला के देखते हैं
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है