हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
तक़दीर लिए आती है हर रोज़ नया दिन
Gulzar
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अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
मैं उस की नज़रों का कुछ इस लिए भी हूँ क़ाइल
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर