गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
मैं डर रहा हूँ तुझे हाल-ए-दिल सुनाने से
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ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
आओ आँखें मिला के देखते हैं
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका