दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
जितने सिक्के डालोगे उतना ख़ाली रह जाएगा
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(523) Peoples Rate This
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर