ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
पाँव निकाले जा सकते हैं चादर से
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दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका