अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
मगर ये दरिया मुझे तैरना सिखाता है
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आओ आँखें मिला के देखते हैं
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था