मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
वो जिस्म जब निकल गया रेशम के थान से
तुम में से कौन कौन मुझे ये बताएगा
उतरा है कौन मेरे लिए आसमान से
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
मैं देखता रहा हूँ तुझे ख़ाक-दान से
Faiz Ahmad Faiz
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एक तू, एक आशिक़ी मेरी
आओ आँखें मिला के देखते हैं
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को