कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
पैमाने की हद होती है आख़िर भर ही जाएगा
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
कौन सी चीज़ कहाँ रख दी है कौन मुझे बतलाएगा
प्यार इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
जितने सिक्के डालोगे इतना ख़ाली रह जाएगा
Ahmad Faraz
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गए दिनों में ये इनआम होने वाला था
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे