जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
यानी हम ने अपने अंदर देखा है
उन आँखों को देखने वाले कहते हैं
इस दुनिया को हम ने बेहतर देखा है
जाने वाले तुझ को इतना याद रहे
हम ने तेरा हाथ पकड़ कर देखा है
तेरी कैसे बन जाती है दुनिया से
मैं ने अपना आप बदल कर देखा है
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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Mohsin Naqvi
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बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है