बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
फिर से मिलने का सिलसिला निकला
फिर वो लौट आई ज़िंदगी की तरफ़
मेरे होंटों से शुक्रिया निकला
तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
तू भी ऐ दोस्त आइना निकला
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मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी