Ghazals of Rana Amir Liyaqat
नाम | राना आमिर लियाक़त |
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अंग्रेज़ी नाम | Rana Amir Liyaqat |
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
कितने ख़्वाब समेटे कोई कितने दर्द कमाएगा
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए