यानी कोई कमी नहीं मुझ में
यानी मुझ में कमी उसी की है
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फूल खिलते हैं तालाब में तारा होता
इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
या उन्हें आती नहीं बज़्म-ए-सुख़न-आराई
ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा
सिर्फ़ बच्चे ही नहीं शोर मचाने आते
थकन का बोझ बदन से उतारते हैं हम
मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है