कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
तो क्या ये कम है तिरी देख-भाल करता हूँ
मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे
मैं अपने आप से इतने सवाल करता हूँ
अगर मलाल किसी को नहीं मिरा न सही
मैं ख़ुद भी कौन सा अपना मलाल करता हूँ
ये चाँद और सितारे रफ़ीक़ हैं मेरे
मैं रोज़ इन से बयाँ अपना हाल करता हूँ
तुम्हारी याद भी आती है अब मुझे कम कम
तुम्हारा ज़िक्र भी अब ख़ाल-ख़ाल करता हूँ
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