हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
तो ये चराग़ भी महताब की ख़बर रक्खे
उठा न पाएगी आसूदगी थकन का बोझ
सफ़र की गर्द ही आसाब की ख़बर रक्खे
तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत में
किसे कहूँ मिरे अहबाब की ख़बर रक्खे
नहीं है फ़िक्र अगर शहर की मकानों को
तो कोई दश्त ही सैलाब की ख़बर रक्खे