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जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था - रम्ज़ अज़ीमाबादी कविता - Darsaal

जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था

जलने का हुनर सिर्फ़ फ़तीले के लिए था

रोग़न तो चराग़ों में वसीले के लिए था

संदल का वो गहवारा जो नीलाम हुआ है

इक राज घराने के हटीले के लिए था

अय्याश तबीअत का है आईना इक इक ईंट

ये रंग-महल एक रंगीले के लिए था

कल तक जो हरा पेड़ था क्यूँ सूख गया है

जब धूप का मौसम किसी गीले के लिए था

मस्जिद का खंडर था न वो मंदिर ही का मलबा

जो गाँव में झगड़ा था वो टीले के लिए था

काँटों का तसर्रुफ़ उसे अब किस ने दिया है

ये फूल तो गुलशन में रसीले के लिए था

अब रहता है जिस में बड़े सरकार का कुम्बा

दालान तो घोड़े के तबेले के लिए था

शोहरत की बुलंदी पे मुझे भूल गया है

क्या नाम मिरा 'रम्ज़' वसीले के लिए था

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In Hindi By Famous Poet Ramz Azimabadi. is written by Ramz Azimabadi. Complete Poem in Hindi by Ramz Azimabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.