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हसरत-ए-सिक्का-ए-बख़ील न कर - रम्ज़ अज़ीमाबादी कविता - Darsaal

हसरत-ए-सिक्का-ए-बख़ील न कर

हसरत-ए-सिक्का-ए-बख़ील न कर

अपने कश्कोल को ज़लील न कर

कुछ न बोलेंगे मुद्दई' के ख़िलाफ़

दोस्तों को कभी वकील न कर

बहस जारी रहे तो बेहतर है

मेरे दा'वे को बे-दलील न कर

मैं फ़रासत-गज़ीदगी का शिकार

मुझ को फ़र्ज़ाना-ओ-अक़ील न कर

हाथ ऊँचा रहे कुशादा रहे

जेब को कीसा-ए-बख़ील न कर

कोई हद है तिरी ज़रूरत की

ज़िंदगी यूँ मुझे ज़लील न कर

'रम्ज़' क़ैद-ए-हयात झेल अभी

इतनी उजलत मिरे ख़लील न कर

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In Hindi By Famous Poet Ramz Azimabadi. is written by Ramz Azimabadi. Complete Poem in Hindi by Ramz Azimabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.