कभी बुलाओ, कभी मेरे घर भी आया करो
कभी बुलाओ, कभी मेरे घर भी आया करो
यही है रस्म-ए-मोहब्बत, इसे निभाया करो
तुम्हारे जिस्म के अशआर मुझ को भाते हैं
मिरी वफ़ा की ग़ज़ल तुम भी गुनगुनाया करो
तुम्हारे वस्ल की रातों की लज़्ज़तों की क़सम
मुझे जुदाई के मंज़र न अब दिखाया करो
क़रीब आओ, इन आँखों की जुस्तुजू देखो
हयात बन के मिरे साथ जगमगाया करो
शरीफ़-ज़ादों की बेजा ख़ताओं से मिलने
यतीम-ख़ानों के बच्चों से मिलने जाया करो
हमारे हिस्से में माँ की दुआएँ आईं 'कँवल'
तुम अपने हिस्से की दौलत से घर सजाया करो
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