ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है
क्या किसी को दुख देना क्या किसी का ग़म करना
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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तेरी महफ़िल में सितारे कोई जुगनू लाया
अब कहाँ वो पहली सी फ़ुर्सतें मयस्सर हैं
ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते
कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है
हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती
अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ
आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे
लफ़्ज़ बे-जाँ हैं मिरे रूह-ए-मआनी मुझे दे
मैं अँधेरों का पुजारी हूँ मिरे पास न आ
लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं
तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया
आँसू जो बहें सुर्ख़ तो हो जाती हैं आँखें