जो तेरे ग़म में जले हैं वो फिर बुझे ही नहीं
जब इन की राख कुरेदो शरारे ज़िंदा हैं
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(692) Peoples Rate This
किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ
मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले
ज़र्रा इंसान कभी दश्त-नगर लगता है
ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते
तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया
अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ
हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती
न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं
मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना
आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे
दिल में तो बहुत कुछ है ज़बाँ तक नहीं आता