आँसू जो बहें सुर्ख़ तो हो जाती हैं आँखें
दिल ऐसा सुलगता है धुआँ तक नहीं आता
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लफ़्ज़ बे-जाँ हैं मिरे रूह-ए-मआनी मुझे दे
मैं अँधेरों का पुजारी हूँ मिरे पास न आ
लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं
मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले
किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया
कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है
दिल में तो बहुत कुछ है ज़बाँ तक नहीं आता
मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना
इस डर से इशारा न किया होंट न खोले
रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया
हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती