न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं

न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं

ये ज़ालिम लोग भी इंसानियत का दर्द रखते हैं

मुझे शक है कि तुम तीरा शबों में कैसे निकलोगे

चटानें काटने का हौसला तो मर्द रखते हैं

मोहब्बत करने वालों की तुम्हें पहचान बतलाऊँ

दिलों में आग के बा-वस्फ़ सीना सर्द रखते हैं

हवा ने अहल-ए-सहरा को अजब मल्बूस बख़्शा है

सरों पर लोग पगड़ी के बजाए गर्द रखते हैं

उसे देखा तो चेहरा ढाँप लोगे अपने हाथों से

हम अपने साथियों में 'राम' ऐसा फ़र्द रखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Ram Riyaz. is written by Ram Riyaz. Complete Poem in Hindi by Ram Riyaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.