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कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है - राम रियाज़ कविता - Darsaal

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

सिलसिला वक़्त का तलवार से जा मिलता है

मैं जहाँ भी हूँ मगर शहर में दिन ढलते ही

मेरा साया तिरी दीवार से जा मिलता है

तेरी आवाज़ कहीं रौशनी बन जाती है

तेरा लहजा कहीं महकार से जा मिलता है

चौदहवीं-रात तिरी ज़ुल्फ़ में ढल जाती है

चढ़ता सूरज तिरे रुख़्सार से जा मिलता है

गर्द फिर वुसअत-ए-सहरा में सिमट जाती है

रास्ता कूचा ओ बाज़ार से जा मिलता है

'राम' हर-चंद कई लोग बिछड़ जाते हैं

क़ाफ़िला क़ाफ़िला-सालार से जा मिलता है

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In Hindi By Famous Poet Ram Riyaz. is written by Ram Riyaz. Complete Poem in Hindi by Ram Riyaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.