किस ने कहा था शहर में आ कर आँख लड़ाओ दीवारों से
किस ने कहा था शहर में आ कर आँख लड़ाओ दीवारों से
साया साया भटक भटक अब सर टकराओ दीवारों से
घात की पलकें झपक रहे हैं खुल खुल कर अंजान दरीचे
ज़ख़्मों के अब फूल समेटो पत्थर खाओ दीवारों से
क़त-ए-नज़र के बा'द भी अक्सर बढ़ जाती है दिल की धड़कन
आँख उठाए क्या बनता है दिल ही उठाओ दीवारों से
रस्तों की तहज़ीब यही है दाएँ बाएँ छोड़ के चलना
सीधे ही घर जाना है तो मुँह न लगाओ दीवारों से
सोच घुटन में डूब न जाए तोड़ो ये संकोच के घेरे
खुली हवा में पर फैलाओ जान बचाओ दीवारों से
लम्स की लज़्ज़त नर्मी सख़्ती दोनों का गडमड रिश्ता है
पास ही आ कर तुम समझोगे दूर न जाओ दीवारों से
ये भी कैसी रीत समय की बुनियादों से मेहराबों तक
ख़ून के नाते सब कुछ दे कर कुछ भी न पाओ दीवारों से
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