ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं
ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं
किनारों से हैं उम्मीदें न मौजों के सहारे हैं
नहीं मा'लूम क्या क्या रंग बदलेगी अभी दुनिया
निगाह-ए-वक़्त के ऐ दिल बहुत नाज़ुक इशारे हैं
मिरे आँसू तो जज़्ब-ए-ख़ाक हो कर रह गए कब के
दरख़्शाँ उन की पलकों पर अभी तक कुछ सितारे हैं
हमारी और तुम्हारी ज़िंदगी में फ़र्क़ ही क्या है
वही बातें तुम्हारी हैं वही क़िस्से हमारे हैं
इबारत है उन्हीं से दास्तान-ए-ज़िंदगी 'मुज़्तर'
किसी की याद में जो ज़िंदगी के दिन गुज़ारे हैं
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