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शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती - राम कृष्ण मुज़्तर कविता - Darsaal

शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती

शब-ए-ग़म की सहर नहीं होती

दास्ताँ मुख़्तसर नहीं होती

जब किसी की नज़र नहीं होती

हम को अपनी ख़बर नहीं होती

बाज़ औक़ात अपने दिल पर भी

अहल-ए-दिल की नज़र नहीं होती

डगमगाते नहीं क़दम जिस जा

वो तिरी रहगुज़र नहीं होती

जिस मसर्रत में ग़म न हो शामिल

वो कभी मो'तबर नहीं होती

दर्द जब ख़ुद ही अपना दरमाँ हो

मिन्नत-ए-चारागर नहीं होती

दिल-ए-'मुज़्तर' से जो निकलती है

वो सदा बे-असर नहीं होती

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In Hindi By Famous Poet Ram Krishn Muztar. is written by Ram Krishn Muztar. Complete Poem in Hindi by Ram Krishn Muztar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.