रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है
रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है
ये तुम नज़र में हो कि गुलिस्ताँ नज़र में है
इक रौशनी से आलम-ए-दिल जगमगा उठा
वो हैं कि आफ़्ताब-ए-दरख़्शाँ नज़र में है
अहल-ए-जुनूँ से कीजिए अब चाक-ए-दिल की बात
दामन नज़र में है न गरेबाँ नज़र में है
उन के करम से बढ़ने लगे दिल के हौसले
अंदाज़-ए-इल्तिफ़ात-ए-फ़रावाँ नज़र में है
सौ हुस्न ले के आई है दुनिया-ए-आरज़ू
आराइश-ए-हयात का सामाँ नज़र में है
बढ़ती ही जा रही हैं मिरी बे-क़रारियाँ
जब से किसी की ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ नज़र में है
नज़्ज़ारा-ए-जमाल किए देर हो चुकी
अब तक फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-हसीनाँ नज़र में है
हल्क़ा बना के नाच रही हैं तजल्लियाँ
किस मह-जबीं का चेहरा-ए-ताबाँ नज़र में है
शायद उसी के दम से है क़ाएम उम्मीद-ए-ज़ीस्त
इक जाँ-फरोज़ शम-ए-फ़रोज़ाँ नज़र में है
हम भी निगाह-ए-दोस्त से ना-आश्ना नहीं
हर इन्क़िलाब-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नज़र में है
'मुज़्तर' को अपने बख़्त-ए-रसा पर है आज नाज़
आक़ा-'हसन' की बज़्म-ए-गुल-अफ़्शाँ नज़र में है
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