Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f98d29a723608b873fe5ee60c3ef3333, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम - राम कृष्ण मुज़्तर कविता - Darsaal

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

ये और बात है न कहें कुछ किसी से हम

इक शाम हम-सुख़न थे चमन में कली से हम

यादश-ब-ख़ैर फिर न मिले ज़िंदगी से हम

अल्लाह रे वो वक़्त वो मजबूरी-ए-हयात

रो रो के हो रहे थे जुदा जब किसी से हम

तकलीफ़-ए-इल्तिफ़ात न कर ऐ निगाह-ए-नाज़

अब मुतमइन हैं अपने ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

हैं याद उस नज़र की तग़ाफ़ुल-शिआ'रियाँ

बा-वस्फ़-ए-इर्तिबात भी थे अजनबी से हम

बढ़ती ही जा रही हैं अबस बद-गुमानियाँ

ना-आश्ना नहीं हैं तिरी बरहमी से हम

एक इक अदा-ए-हुस्न-ए-गुरेज़ाँ नज़र में है

पामाल हो रहे हैं बड़ी बे-रुख़ी से हम

हर-सू है एक आलम-ए-वहशत शब-ए-फ़िराक़

घबरा रहे हैं सिलसिला-ए-तीरगी से हम

ग़ारत किया है जिस ने हमारा सुकून-ए-दिल

'मुज़्तर' सुकून-ए-दिल के हैं ख़्वाहाँ उसी से हम

(705) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Ram Krishn Muztar. is written by Ram Krishn Muztar. Complete Poem in Hindi by Ram Krishn Muztar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.