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सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ - राम अवतार गुप्ता मुज़्तर कविता - Darsaal

सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ

सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ

कुछ अपनी सम्त चल कर देखता हूँ

मुक़द्दर फूल हैं या ठोकरें फिर

किसी पत्थर में ढल कर देखता हूँ

मुझे देती है क्या क्या नाम दुनिया

तिरे कूचे में चल कर देखता हूँ

तपिश बेबाकियों की कम हो शायद

लहू सूरज पे मल कर देखता हूँ

भरोसा तो नहीं वअ'दे पे तेरे

मगर फिर भी बहल कर देखता हूँ

ये वो हैं या कि मेरा वाहिमा है

उन्हें फिर आँखें मल कर देखता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Ram Awtar Gupta Muztar. is written by Ram Awtar Gupta Muztar. Complete Poem in Hindi by Ram Awtar Gupta Muztar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.