राम अवतार गुप्ता मुज़्तर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
नाम | राम अवतार गुप्ता मुज़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Ram Awtar Gupta Muztar |
ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है
तेरा होना न मान कर गोया
शाम-ए-अवध ने ज़ुल्फ़ में गूँधे नहीं हैं फूल
सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ
रह-ए-क़रार अजब राह-ए-बे-क़रारी है
नवाज़ा है मुझे पत्थर से जिस ने
नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर
न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने
दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
देख लिया क्या जाने शाम की सूनी आँखों में
बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे
ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में
वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे
सीने में जब दर्द कोई बो जाता है
सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ
रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है
राज़-ए-हस्ती से आश्ना न हुआ
क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया
जो भी देना है वो ख़ुदा देगा
हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता
हसीं तुझ से तिरा हुस्न-ए-तलब था
दीवाना कर के मुझ को तमाशा किया बहुत