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चराग़ बुझने लगे और छाई तारीकी - राकिब मुख़्तार कविता - Darsaal

चराग़ बुझने लगे और छाई तारीकी

चराग़ बुझने लगे और छाई तारीकी

चुका रहा था मैं क़ीमत हवा से यारी की

तू सोच भी नहीं सकता जिस एहतिमाम के साथ

कटे शजर पे परिंदों ने आह-ओ-ज़ारी की

वो जिस का इश्क़ मिरा जुज़्व-ए-रूह बन गया था

उसी ने मुझ से मोहब्बत भी इख़्तियारी की

तुम्हारा वज्द में आना फ़क़त दिखावा था

वो कैफ़ियत ही नहीं थी जो ख़ुद पे तारी की

तुम्हारे शहर की हुरमत का पास रखते हुए

अदू कोई न बनाया सभी से यारी की

जहाँ ख़ुदा की अज़ाँ हो रही हो गीत की नज़्र

सुनेगा कौन वहाँ पर सदा भिकारी की

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In Hindi By Famous Poet Rakib Mukhtar. is written by Rakib Mukhtar. Complete Poem in Hindi by Rakib Mukhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.