कैसे निकलूँ ख़ुमार से बाहर
कैसे निकलूँ ख़ुमार से बाहर
बाज़ुओं के हिसार से बाहर
दर्द निकला है सब्र की हद से
अश्क निकले क़तार से बाहर
चंद लम्हों की मुख़्तसर क़ुर्बत
और यादें शुमार से बाहर
इस लिए उस की याद में गुम हूँ
भूलना इख़्तियार से बाहर
और जाएँ कहाँ मह ओ अंजुम
रोज़-ओ-शब के मदार से बाहर
तिफ़्ल-ए-दिल फिर उदास बैठा है
कोई ले जाए प्यार से बाहर
कोई 'रख़्शंदा' मिलने आया है
चल चलें इंतिज़ार से बाहर
(575) Peoples Rate This