ग़मी ख़ुशी बाँटी थी अपने बिस्तर से

ग़मी ख़ुशी बाँटी थी अपने बिस्तर से

मेरी हम-सफ़री थी अपने बिस्तर से

चार तरफ़ रेशम था उस में उलझ गई

मुश्किल से फिर बची थी अपने बिस्तर से

सिलवट सिलवट तारे करते हुए शुमार

सेहर-मिसाल उतरी थी अपने बिस्तर से

नींदें पलक में भर कर रुई की मानिंद

इधर उधर भटकी थी अपने बिस्तर से

जंगल की जानिब फिर हवा ने कूच किया

क्या वो तंग पड़ी थी अपने बिस्तर से

पंखे पर आबाद घरौंदा चिड़िया का

अजब ही मंज़र-कशी थी अपने बिस्तर से

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In Hindi By Famous Poet Rakhshanda Naved. is written by Rakhshanda Naved. Complete Poem in Hindi by Rakhshanda Naved. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.