Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d9492467ff04374f42fc6165c6e9d298, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये ज़िंदगी तो मुसलसल सवाल करती है - रख़शां हाशमी कविता - Darsaal

ये ज़िंदगी तो मुसलसल सवाल करती है

ये ज़िंदगी तो मुसलसल सवाल करती है

मगर जवाब वही ख़ामुशी ठहरती है

तिरे ख़याल के साहिल से देखती हूँ मैं

तिरी ही शक्ल हर इक मौज से उभरती है

किसी रक़ीब से मिलती है जब ख़बर तेरी

तुझे पता है मिरे दिल पे क्या गुज़रती है

गली गली में मिलेंगे ग़ज़ल के दीवाने

मगर ये शोख़ बहुत कम किसी पे मरती है

मैं सहर में तिरी बातों के खोई रहती हूँ

किसी की बात मिरे दिल में कब उतरती है

ज़रा सी देर को रुकता तो है सफ़र लेकिन

किसी के जाने से कब ज़िंदगी ठहरती है

गँवा के ख़ुद को भी पाया न मैं ने कुछ 'रख़्शाँ'

कभी कभी यही ला-हासिली अखरती है

(845) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Rakhshan Hashmi. is written by Rakhshan Hashmi. Complete Poem in Hindi by Rakhshan Hashmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.