आँख ने फिर अज़ाब देखा है
आँख ने फिर अज़ाब देखा है
एक ताज़ा गुलाब देखा है
नींद रातों को अब नहीं आती
ख़्वाब ऐसा ख़राब देखा है
साँस लेना भी हो गया मुश्किल
जब से आँखों ने ख़्वाब देखा है
जाने कैसे नशे में है दिल भी
आज उस ने शराब देखा है
ज़ख़्म भी फूल जैसे हैं 'रख़्शाँ'
ज़ख़्म तो बे-हिसाब देखा है
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