दर्द सारे शब-ए-ख़ामोश में गिर जाते हैं
दर्द सारे शब-ए-ख़ामोश में गिर जाते हैं
अश्क जाहिल हैं मिरे होश में गिर जाते हैं
बंदगी हम ने तबीअ'त में वो पाई है कि बस
सर ख़ुदाओं के कई दोश में गिर जाते हैं
जाने लग़्ज़िश को हमारी सुकूँ आएगा कहाँ
दर से उठते हैं तो आग़ोश में गिर जाते हैं
तेरे कूचे से गुज़रते हुए ख़ुशियों के क़दम
तेज़ चलते हैं मगर जोश में गिर जाते हैं
इतने शातिर हैं यहाँ लोग किसी गुलचीं से
गुल बचाते हुए गुल-पोश में गिर जाते हैं
मय-कदे से जो निकलती है ख़मोशी 'रजनीश'
लब वहीं साग़र-ए-मय-नोश में गिर जाते हैं
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