रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में
रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में
चार दिए रौशन हैं चार दिशाओं में
काई जमी थी सीने में जाने कब से
चीख़ उठा वो आ कर खुली फ़ज़ाओं में
अपनी गुम आवाज़ें आओ तलाश करें
सब्ज़ परिंदों की सय्याल सदाओं में
मैं भी कुरेद रहा था ख़ाक की परतों को
वो भी झाँक रहा था दूर ख़लाओं में
ठंडी छाँव देख के वो आ बैठा था
उलझ गया बरगद की घनी जटाओं में
घाट घाट कोशिश की पार उतरने की
लहर कोई दुश्मन थी सब दरियाओं में
वो सरसब्ज़ ज़मीनों तक हम-सफ़र रहा
उड़ न सका फिर मेरे साथ हवाओं में
पानी ज़रा बरसने दे मंज़र फिर देख
रंग छुपे हैं सब इन सियह घटाओं में
आ मैं तेरे मन में झाँकूँ और बताऊँ
क्यूँ तासीर नहीं है तिरी दुआओं में
सब आपस में लड़ कर बस्ती छोड़ गए
ख़ुश ख़ुश जा आबाद हुए सहराओं में
एक तलब ने 'बानी' बहुत ख़राब किया
आख़िर हम भी हुए शुमार गदाओं में
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