पैहम मौज-ए-इमकानी में
पैहम मौज-ए-इमकानी में
अगला पाँव नए पानी में
सफ़-ए-शफ़क़ से मिरे बिस्तर तक
सातों रंग फ़रावानी में
बदन विसाल-आहंग हवा सा
क़बा अजीब परेशानी में
क्या सालिम पहचान है उस की
वो कि नहीं अपने सानी में
टोक के जाने क्या कहता वो
उस ने सुना सब बे-ध्यानी में
याद तिरी जैसे कि सर-ए-शाम
धुँद उतर जाए पानी में
ख़ुद से कभी मिल लेता हूँ मैं
सन्नाटे में वीरानी में
आख़िर सोचा देख ही लीजे
क्या करता है वो मन-मानी में
एक दिया आकाश में 'बानी'
एक चराग़ सा पेशानी में
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