न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं
न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं
कि हम परिंदे मक़ामात-ए-गुम-शुदा के हैं
सितम ये देख कि ख़ुद मो'तबर नहीं वो निगाह
कि जिस निगाह में हम मुस्तहिक़ सज़ा के हैं
क़दम क़दम पे कहे है ये जी कि लौट चलो
तमाम मरहले दुश्वार-ए-इंतिहा के हैं
फ़सील-ए-शब से अजब झाँकते हुए चेहरे
किरन किरन के हैं प्यासे हवा हवा के हैं
कहीं से आई है 'बानी' कोई ख़बर शायद
ये तैरते हुए साए किसी सदा के हैं
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