न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ
न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ
तेरा ही झोंका हूँ ऐ तेज़ हवा मैं क्या हूँ
रक़्स यक क़तरा-ए-ख़ूँ आप कशिश आप जुनूँ
ऐ रम-ए-रौशनी-ए-हर्फ़-ओ-सदा मैं क्या हूँ
इक बिखरती हुई तरतीब-ए-बदन हो तुम भी
राख होते हुए मंज़र के सिवा मैं क्या हूँ
एक टहनी का यहाँ अपना मुक़द्दर कैसा
पेड़ का पेड़ ही गिरता है जुदा मैं क्या हूँ
तू भी ज़ंजीर-ब-ज़ंजीर बढ़ा है मिरी सम्त
साथ मेरे भी रिवायत है नया मैं क्या हूँ
कौन है जिस के सबब तुझ में मोहब्बत जागी
मुझ में क्या तुझ को नज़र आया बता मैं क्या हूँ
अभी होना है मुझे और कहीं जा के तुलूअ'
डूबते मेहर के हमराह बुझा मैं क्या हूँ
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