हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
शफ़क़ शजर तस्वीर बनाने वाला मैं
ख़ला के सारे रंग समेटने वाली शाम
शब की मिज़ा पर ख़्वाब सजाने वाला मैं
फ़ज़ा का पहला फूल खिलाने वाली सुब्ह
हवा के सुर में गीत मिलाने वाला मैं
बाहर भीतर फ़स्ल उगाने वाला तू
तिरे ख़ज़ाने सदा लुटाने वाला मैं
छतों पे बारिश दूर पहाड़ी हल्की धूप
भीगने वाला पँख सुखाने वाला मैं
चार दिशाएँ जब आपस में घुल मिल जाएँ
सन्नाटे को दुआ बनाने वाला मैं
घने बनों में शंख बजाने वाला तू
तिरी तरफ़ घर छोड़ के आने वाला मैं
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