इक मोहब्बत के सिवा और न कुछ माँगा था
क्या करें ये भी ज़माने को गवारा न हुआ
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उन को ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते
मिरी दास्ताँ मुझे ही मिरा दिल सुना के रोए
जब जब तुम्हें भुलाया तुम और याद आए
यूँ हसरतों के दाग़ मोहब्बत में धो लिए
न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
किस तरह जीते हैं ये लोग बता दो यारो
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
हमें वास्ता तड़प से हमें काम आँसुओं से
कल चमन था आज इक सहरा हुआ